रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या होता है?-What is Repo and Reverse Repo Rate?

टीवी पर समाचार देखते या न्यूज़ पेपर के माध्यम से समाचार पढ़ते समय आप इस तरह की सब्जेक्ट लाइन पर आ कर सोचते होंगे कि उनका क्या मतलब है  :-

आरबीआई(RBI) ने रेपो रेट(Repo Rate), रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) 25 बेसिस पॉइंट(Basis Point) बढ़ाया”

आरबीआई(RBI) कट्स रेपो रेट(Repo Rate) 25 बेसिस पॉइंट(Basis Point)”

आरबीआई(RBI) की रेट सेटिंग पैनल या मोनेटरी पॉलिसी कमिटी(Monetary Policy Committee) अप्रैल माह में फर्स्ट क्वार्टर की इंटरेस्ट रेट का अनाउंस करेगा”

भारतीय रिजर्व बैंक(Reserve Bank of India- RBI) हर दो महीने में एक बार मोनेटरी पॉलिसी की समीक्षा करता है और मौद्रिक नीति या मोनेटरी पॉलिसी की घोषणा के दौरान हर बार रेपो रेट(Repo Rate), रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) जैसे शब्द आते हैं।

आइए सरल शब्दों में समझते है कि रेपो रेट(Repo Rate) और रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) क्या है? और इन रेट्स में बदलाव से आपके जीवन में क्या असर पड़ता है ?

भारतीय रिजर्व बैंक के सबसे महत्वपूर्ण कार्य-The Most Important Work of the Reserve Bank of India

यह सभी जानते है कि आरबीआई(RBI) भारत के सभी कमर्शियल बैंकों(Commercial Banks) के लिए रेगुलेटर(Regulator) के रूप में कार्य करता है। आरबीआई(RBI) के सबसे महत्वपूर्ण कार्य है :-

  • अर्थव्यवस्था या इकॉनमी(Economy) में धन या मनी(Money) की आपूर्ति(Supply) को नियंत्रित करना :- इसका मतलब है कि इकॉनमी(Economy) और बाजार या मार्किट की परचेसींग पावर(Purchasing Power) के लिए कितना पैसा है।
  • क्रेडिट की लागत या कॉस्ट को नियंत्रित करना :- इसका मतलब कमर्शियल बैंक द्वारा कस्टमर को दिये लोन(Loan) के इंटरेस्ट रेट(Interest Rate) से है।

आरबीआई(RBI) इन कार्यों को नियमित रूप से मॉनीटर करता है क्योंकि ये सीधे मुद्रास्फीति या इन्फ्लेशन (Inflation) और अर्थव्यवस्था या इकॉनमी के विकास को प्रभावित करते हैं। इसलिए आरबीआई मुद्रास्फीति या इन्फ्लेशन(Inflation) को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास या इकनोमिक ग्रोथ(Economic Growth) के लिए रेपो रेट(Repo Rate) और रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) को टूल के रूप में उपयोग करता है।

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रेपो रेट क्या है? – What is Repo Rate?

जब हमें पैसे की जरूरत होती है तो हम लोन(Loan) के लिए बैंकों(Banks) से संपर्क करते हैं, और वे हमसे लोन पर इंटरेस्ट लेते हैं।

इसी तरह जब बैंक को धन की कमी होती हैं, तो वे आरबीआई(RBI) से पैसे उधार लेते हैं, और जो इंटरेस्ट रेट का भुगतान वे करते है उसे रेपो रेट(Repo Rate) कहा जाता है।

इस उधार के लिए बैंक के पास उपलब्ध सरकारी प्रतिभूतियों या गवर्न्मेंट सिक्योरिटीज(Government Securities) को कोलैटरल(Collateral) के रूप में आरबीआई(RBI) के पास रखते हैं।

रेपो रेट(Repo Rate) “पुनर्खरीद विकल्प” या “री-परचेस(Re-purchase) ऑप्शन(Options)” के साथ उपलब्ध होता है । इसका मतलब है कि यह बैंक(Bank) और आरबीआई(RBI) के बीच एक समझौता है जिसमे  लोन टेन्योर खत्म होने के बाद बैंक गवर्नमेंट सिक्योरिटीज को पूर्व निर्धारित कीमत पर री-परचेस(Re-Purchase) करेगा। आमतौर पर, ये टेन्योर बहुत छोटे होते हैं। उनमें से ज्यादातर ओवर नाईट (1 दिन) के लिए होता हैं।

उदाहरण के लिए माना कि रेपो रेट(Repo Rate) 4% है और आरबीआई(RBI), बैंक(Bank) को 1000 रुपये उधार देता है तो फिर बैंक(Bank), आरबीआई(RBI) को 40 रुपये इंटरेस्ट का भुगतान करेगा। यदि बैंक इंटरेस्ट चुकाने में असमर्थ होता है तो आरबीआई(RBI) अपने पास रखी गवर्नमेंट सिक्योरिटीज को खुले बाजार(Open Market) में बेच कर अपनी राशि वसूल सकता है।

रिवर्स रेपो रेट क्या है? – What is Reverse Repo Rate?

जब भी आपके पास सरप्लस(Surplus) नकद या कैश(Cash) होता है तो आप बैंक के पास पैसे को जमा करते हैं और इसके बदले में आपको उस राशि के लिए कुछ इंटरेस्ट मिलता है।

इसी तरह जब बैंकों(Banks) के पास सरप्लस(Surplus) धन होता है, तो वे आरबीआई(RBI) के पास जमा करते हैं,  इस पर वे जिस इंटरेस्ट रेट से इंटरेस्ट कमाते है उसे रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) कहते है। इस डिपाजिट के लिए आरबीआई(RBI), बैंको(Banks) को गवर्नमेंट सिक्योरिटीज(G-Secs) कोलैटरल के रूप प्रदान करती है।

रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) “रिवर्स री-पर्चेज विकल्प(Reverse Re-Purchase options)” के साथ मिलता है। यह बैंक(Bank) और आरबीआई(RBI) के बीच एक समझौता होता है जहां बैंक रेपो पीरियड के बाद गवर्नमेंट सिक्योरिटीज को री-सेल(ReSell) करने का वादा करता है। रिवर्स रेपो पीरियड आमतौर पर ओवर नाईट ही होता है। इसका मतलब यह है कि आरबीआई(RBI) द्वारा बैंक(Bank) को भुगतान किया गया इंटरेस्ट केवल 1 दिन का ही होगा।

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इन्फ्लेशन को कन्ट्रोल करने और इकनोमिक ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए आरबीआई रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट का उपयोग कैसे करता है?

अब समझते है की आरबीआई(RBI) रेपो रेट(Repo Rate) और रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) का उपयोग कर कैसे इन्फ्लेशन को मैनेज करती है? और इकनोमिक ग्रोथ को चलाती हैं?

इस आर्टिकल को लिखते समय आरबीआई(RBI) की रेपो रेट 4% और रिवर्स रेपो रेट को 3.35% है। अब दो सिनेरियो(Scenario) की कल्पना करते है :-

सिनेरियो(Scenario) 1 : इन्फ्लेशन हाई है, यानी की गुड्स और सर्विसेज की लागत या कॉस्ट बढ़ रही है

इन्फ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए आरबीआई(RBI) रेपो रेट(Repo Rate) 4.5% और रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) को 3.75% तक बढ़ाता है।

इसका मतलब हुआ कि बैंकों(Banks) को अब आरबीआई(RBI) को पहले की तुलना में अधिक इंटरेस्ट देना होगा। इसलिए, बैंक अब इस बड़ी हुई कॉस्ट(Cost) को मैनेज करने के लिए अपने कस्टमर्स से हाई इंटरेस्ट रेट(High Interest Rate) चार्ज करना शुरू कर देंगे, जिसके कारण कंस्यूमर्स(Consumers) अब कम लोन लेंगे।

इंटरेस्ट रेट हाई होने के कारन मार्किट में धन की सप्लाई(Supply) कम हो जाएगी, जिसके कारण कंस्यूमर्स खर्च करने के लिए लोन लेने की जगह केवल अपनी सेविंग(Saving) पर ही भरोसा करेंगे। इसका का परिणाम यह होगा की मार्किट में डिमांड(Demands) गिर जाएगी।

सिंपल इकोनॉमिक्स(Simple Economics) के अनुसार जब मांग या डिमांड(Demands) में कमी आती है तो प्राइस भी गिर जाएंगी, जिससे की इन्फ्लेशन(Inflation) को कंट्रोल किया जा सकेगा।

इस लिए इन्फ्लेशन(Inflation) को कंट्रोल करने के लिए आरबीआई(RBI) रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट को बढ़ाता है। अगली बार जब आप रेट को बढ़ता देखेंगे,तो आपको पता चलेगा कि आरबीआई(RBI) क्या करने की कोशिश कर रहा है?

सिनेरियो(Scenario) 2 : इन्फ्लेशन कम है, और आरबीआई(RBI) इकनोमिक ग्रोथ को बढ़ावा देना चाहता है

आरबीआई(RBI) इकनोमिक ग्रोथ(Economic Growth) को बढ़ाने के लिए  रेपो रेट(Repo Rate) को 3.75% और रिवर्स रेपो रेट(Reverse Repo Rate) को 3.15% तक कम कर देता है।

इसका मतलब है कि आरबीआई(RBI) को बैंकों(Banks) द्वारा भुगतान की गई इंटरेस्ट कम हो जाएगी। इसलिए वे अपने कस्टमर्स(Customers) को कम इंटरेस्ट रेट पर उधार दे सकते हैं।

इंटरेस्ट रेट कम होने के कारन कंस्यूमर्स(Consumers) लोन लेकर गुड्स और सर्विसेज खरीदने के लिए प्रोत्साहित होगा।

इंटरेस्ट रेट कम होने से इकॉनमी में धन की सप्लाई बढ़ जाती है, जिससे डिमांड(Demand) बढ़ती है और प्राइस भी बढ़ता है। इसके परिणाम स्वरुप इन्फ्लेशन(Inflation) में वद्धि होती है।

इसलिए आरबीआई(RBI) यह सुनिश्चित करने के लिए इन दोनों रेट्स को एडजस्ट करता रहता है, जिससे कि इन्फ्लेशन बहुत अधिक नहीं हो और इकोनॉमी भी बढ़ती रहे।

रिवर्स रेपो रेट हमेशा रेपो रेट से कम क्यों होता है?- Why is the Reverse Repo Rate Always less than the Repo Rate?

यह समझना काफी आसान है। कंस्यूमर्स(Consumers) को उधार या लोन देने के दौरान बैंक(Bank) हाई इंटरेस्ट रेट चार्ज करते हैं और सेविंग अकाउंट में जमा के लिए कम इंटरेस्ट रेट प्रदान करते हैं। इसी तरीके से बैंक अपने लिए लाभ कमाते हैं और लिक्विडिटी(Liquidity) को बनाए रखते हैं।

इसी तरह, आरबीआई(RBI), बैंकों(Banks) को दिए लोन के लिए डिपाजिट(Deposit) के मुकाबले हाई रेट चार्ज करता हैं। यह एक हेअल्थी कैश फ्लो(Healthy Cash Flow) भी सुनिश्चित करता है और बाजार की पर्चासिंग पावर (Purchasing Power) को बढ़ाता है।

सारांश – Conclusion

मुझे यकीन है कि आपको समझ में आया होगा की इकॉनमी में रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट(Repo Rate and Reverse Repo Rate) क्या अर्थ है। आइए जल्दी से एक संक्षिप्त रिकैप करते है :-

पैरामीटररेपो रेट(Repo Rate)रिवर्स रेपो रेट
(Reverse Repo Rate)
उधारकर्ता या बोरोवर(Borrower)
और
ऋणदाता या लोनदाता या लेण्डर(Lender)
RBI बैंकों को लोन देता है।बैंक आरबीआई के पास डिपाजिट करते है।
ब्याज दर या
इंटरेस्ट रेट(Interest Rate)
रिवर्स रेपो रेट से अधिक।रेपो रेट से कम।
मुख्य उद्देश्य(Main Objective)फण्ड या धन की कमी के दौरान उधार या लोन।इकॉनमी में धन या मनी की सप्लाई को एडजस्ट करने के लिए।
एग्रीमेंट का प्रकार(Type of Agreement)री-परचेस(Repurchase) एग्रीमेंट (टेन्योर पूरा होने पर गवर्नमेंट सिक्योरिटीज(G-Secs) की पुनर्खरीद)रिवर्स री-परचेस (Reverse Repurchase) एग्रीमेंट (टेन्योर समाप्त होने पर आरबीआई को गवर्नमेंट सिक्योरिटीज(G-Secs) की री-सेल (ReSell))
हाई रेट इम्पैक्ट (High Rate Impact) या प्रभावकंस्यूमर्स(Consumers) को लोन महंगा हो जाता है।इकॉनमी(Economy) को कम पैसा का सप्लाई(Supply) होता है , जो मुद्रास्फीति या इन्फ्लेशन(Inflation) और खर्च करने और नियंत्रित या कण्ट्रोल करता है।
लो रेट इम्पैक्ट(Low Rate Impact)कंस्यूमर्स(Consumers) को लोन सस्ता हो जाता है।अधिक पैसा की इकॉनमी(Economy) को सप्लाई(Supply) की जाती है जो खर्च और मुद्रास्फीति या इन्फ्लेशन(Inflation) को बढ़ाती है।

इस प्रकार, आरबीआई(RBI) देश की आर्थिक स्थिति या इकोनॉमिक कंडीशन(Economic Condition) पर नियमित जांच करते है और स्थिर आर्थिक विकास या इकोनॉमिक ग्रोथ(Economic Growth) को बनाए रखने के लिए समय-समय पर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट(Repo Rate and Reverse Repo Rate) को एडजस्ट करते रहते है।

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