फाइनेंसियल प्लानिंग क्या होती है?-What is Financial Planning in Hindi
पिछले कुछ सालों में इकोनॉमिकल वर्ल्ड अनेक उतार-चढ़ाव से गुजरा है। जिससे कई बड़े देशों की इकोनॉमिकल स्थिति धराशाई हो गई है और पूरी दुनिया फाइनेंशियल क्राइसिस के दौर से बड़ी मुश्किल से उबर पाई।
भाग्यवश भारत जैसे देशों में इस क्राइसिस के मामूली झटके ही महसूस हुए हैं। लेकिन इस छोटे से हिचकोले ने हमें यह याद दिला दिया है की हम कैसे समय से गुजर रहे हैं ?
हम ऐसे अनिश्चित समय में रह रहे हैं जिसमें रोजगार गायब हो रहे हैं, लगातार नए स्किल सीखने की जरूरत होती है साथ ही, कीमतों और लोन का बोझ बढ़ने तथा रुपए की एक्सचेंज रेट में लगातार उतार चढ़ाव होता रहता है, जिससे सेविंग पर्याप्त नहीं रह गई है।
ऐसी स्थिति में सबसे जरूरी है फाइनेंसियल प्लानिंग(Financial Planning) और इन्वेस्टमेंट (Investment)।
इन्वेस्टमेंट(Investment) का मतलब यह नहीं है कि हर महीने कुछ पैसे बचाकर उसे बैंक में डाल दिया जाए। यदि आप अपने पास मौजूदा पैसे को जस का तस छोड़ दे तो समय के साथ चीजों के दाम बढ़ते के कारण उस पैसे से कुछ खरीदने की आपकी कैपेसिटी घटती जाती है।
जब आप अनिश्चितताओ के बीच गिरे हो तो ऐसे इन्वेस्टमेंट(Investment) करना महत्वपूर्ण है, जिससे आपके पैसे बढे, न कि घटते चले जाएं। बेहतर कल बनाने के लिए यही मूल मंत्र है।
अच्छे फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) के लिए समय (Time) और इन्वेस्टमेंट (Investment) के लिए पैसों की जरूरत होती है।
आइए, आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से यह जानेंगे कि फाइनेंसियल प्लानिंग क्या होती है?(What is Financial Planning) क्या महत्व है?(Why Financial Planning is Important) और कैसे की जाती है?(How to do Financial Planning)
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फाइनेंसियल प्लानिंग क्या है ?-What is Financial Planning?
आपकी फाइनेंसियल स्टेटस (Financial Status) को बढ़ाने के लिए स्टेप बाय स्टेप (Step by Step) प्रोसेस (Process) को फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) कहते है, जिसका लक्ष्य आपकी फाइनेंसियल हेल्थ (Financial Health) को ठीक रखना है।
फाइनेंशियल प्लानिंग की प्रोसेस (Financial Planning process) के लिए इनपुट है :-
- आपका फाइनेंशियल स्टेटस (Financial Status) : आपकी इनकम(Income), असेट्स (Assets) और लायबिलिटीस (Liabilities)
- आपका लक्ष्य (Goals) : आपकी वर्तमान और भविष्य संबंधि फाइनेंशियल रिक्वायरमेंटस (Financial Requirement)
- आपकी रिस्क लेने की क्षमता।
फाइनेंसियल प्लानिंग आपका अपना फाइनेंसियल प्लान(Financial Plan) है, जो बताता है कि आप अपनी रिस्क कैपेसिटी(Risk Capacity), महंगाई, वास्तविक रिटर्न और टैक्स को ध्यान में रखते हुए अपने पैसे का कैसे इन्वेस्ट करें ?(How to Invest) जिससे आपके फाइनेंसियल गोल (Financial Goals) या लक्ष्य तय समय में पूरे हो सके।
संक्षेप में कहें तो, जीवन के फाइनेंसियल गोल (Financial Goals) या लक्ष्य हासिल करने के लिए अपने पैसे को प्लानिंग के अनुसार मैनेज करने की प्रक्रिया (Process) को फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) करते हैं।
फाइनेंसियल गोल या लक्ष्य क्या हैं ?-What is Financial Goals?
आज के समय में कौन नहीं चाहता कि वह एक बड़े मकान और बड़ी कार का मालिक हो, अपने बच्चों को सबसे अच्छी शिक्षा दिलवाए, एक सुखद रिटायरमेंट हो। वास्तव में यह सपने ही जीवन के गोल या लक्ष्य है। इन सपनों को हासिल करने के लिए यकीनन पैसा चाहिए होता है।
हर इंसान को जीवन में फाइनेंसियल गोल या लक्ष्य बनाने चाहिए। छोटी और लंबी अवधि के लिए अलग-अलग गोल होने चाहिए। एक सामान्य नियम के अनुसार 5 सालों में हासिल किए जा सकने वाले लक्ष्य को शॉर्ट टर्म गोल(Short Term Goals) कहते हैं तथा 5 साल से अधिक समय के अंदर हासिल किए जा सकने वाले गोल या लक्ष्य को लोंग टर्म गोल(Long Term Goals) कहते हैं। इस तरह से आप अपने जीवन के लक्ष्यों को वर्गीकृत कर सकते हैं।
लक्ष्य चाहे शॉर्ट टर्म हो या लोंग टर्म सभी के लिए पैसे की आवश्यकता होती है। अपने पैसों की इस तरह प्लानिंग करनी होगी कि सही समय पर आपके पास सही मात्रा में पैसा उपलब्ध रहे, यही फाइनेंसियल प्लानिंग(Financial Planning) है।
फाइनेंसियल प्लानिंग का महत्व क्यों है ? -Why Financial Planning is Important ?
आप यह सोचते होंगे की फाइनेंसियल प्लानिंग की जरूरत (Importance of Financial Planning) क्यों है?
इसी तरह बहुत सारे लोगों को फाइनेंसियल प्लानिंग की बात शब्दों का मायाजाल लगती है, उन्हें लगता है कि इसे नजर अंदाज कर सकते हैं और इसके बिना भी अपना काम अच्छे से चला सकते है।
लेकिन, इसके बिना इस बात की संभावना ज्यादा है कि आपके जीवन लक्ष्य हासिल करने के लिए आपके पास पैसा ना रहे और जब इस बात का एहसास हो तब तक बहुत देर हो चुकी हो।
इन दिनों एवरेज आदमी 70 से 80 साल तक स्वस्थ जीवन जीता है। इसका मतलब है कि रिटायर होने के बाद की भी जिंदगी करीब-करीब नौकरी में बिताए सालों के बराबर होती है। अत: आपके पास महंगाई को ध्यान में रखते हुए इतनी बचत होनी चाहिए कि आप बिना नई इनकम(Income) के करीब 20 से 25 साल तक अपना गुजारा कर सकें और बढ़ती उम्र के साथ बढ़ते मेडिकल खर्च(Medical Expenses) को भी वहन कर सकें।
इसलिए कम उम्र में ही अपने पैसों की प्लानिंग शुरू कर देना सबके लिए जरूरी है।
इस लिए कहा जाता है की फाइनेंसियल प्लानिंग से मन की शांति हासिल करने में मदद मिलती है।
फाइनेंसियल प्लानिंग के क्या फायदे है?-What is the benefit of financial planning ?
एक अच्छी तरीके से तैयार किए गए फाइनेंसियल प्लानिंग के बहुत सारे फायदे (Benefits of Financial Planning) होते हैं। ये हैं :-
- पैसों की आवाजाही पर नजर रहती है और बेवजह के खर्चे कम हो जाते हैं।
- इनकम, एक्सपेंडिचर के बीच में बैलेंस बनाने का काम करता है।
- सेविंग करने और असेट्स बनाने की आदत बनती है।
- टैक्स लायबिलिटी घटाने में मदद मिलती है।
- इन्वेस्टमेंट में अधिकतम रिटर्न मिलने में सहायता।
- जीवन के गोल या लक्ष्य हासिल करने के लिए बेहतर असेट्स मैनेजमेंट(Asset Management) हो जाता है।
- रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी को फाइनेंशियल सिक्योरिटी(Financial Security) मिल जाती है।
- इंश्योरेंस(Insurance) संबंधित आवश्यकताओं की समीक्षा करना ताकि दुर्भाग्यपूर्ण मौत होने पर आपके परिवार के ऊपर फाइनेंशियल बर्डन ना हो।
- विल(Will) लिखना सुनिश्चित करता है।
इसलिए कहा जाता है की फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) करके आप चैन की नींद और मन की शांति हासिल कर सकते हैं।
फाइनेंसियल प्लानिंग बनाने की प्रक्रिया में छह चरण क्या हैं ?-What are the Six Steps in the Financial Planning Process?
फाइनेंसियल प्लानिंग के महत्व(Importance of Financial Planning) को समझने के बाद, अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है की इसकी शुरुआत कहां से की जाए ?
आप चाहे तो किसी फाइनेंशियल प्लानर (Financial planner) की सलाह ले सकते हैं या खुद भी प्लानिंग (Planning) कर सकते हैं।
फाइनेंसियल प्लानिंग के कुछ निश्चित स्टेप्स(Steps in Financial Planning Process) होते हैं। जो निम्न प्रकार से हैं :-
Step 1: अपनी वर्तमान आर्थिक स्थिति पहचाने
परिवार के सभी कमाने वालों की कमाई का हिसाब लगाएं और सारी फाइनेंसियल (Financial) जानकारियां जमा करें जैसे कि सोर्स ऑफ इनकम(Source of Income), लोन(Loan), असेट्स(Assets), लायबिलिटीज (Liabilities) आदि।
अब एक फाइनेंसियल स्टेटमेंट (Financial Statement) तैयार करें, इसके अंदर इनकम(Income), एक्सपेंडिचर(Expenditure), असेट्स(Assets) और लायबिलिटीज(Liabilities) को अलग-अलग लिखें। इस स्टेटमेंट के माध्यम से आपको अपनी करंट फाइनेंसियल पोजीशन (Current Financial Position) की साफ-साफ तस्वीर मिल जाएगी।
Step 2 : अपने लक्ष्यों या गोल की पहचान करें
घर के हर सदस्य से, परिवार के मौजूदा और भविष्य के लक्ष्यों के बारे में पूछें। हर लक्ष्य की प्रायोरिटी तय करें और उसके लिए समय तय करें। हर लक्ष्य के साथ उसका आर्थिक मूल्य(Financial Value) लिख दे। यह सब करने पर आप अपने शॉर्ट टर्म (Short Term) और लोंग टर्म (Long Term) लक्ष्यों (Goals) की आसानी से पहचान कर पाएंगे और जान पाएंगे कि उसके लिए कितने पैसों की जरूरत होगी ?
यह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी से आपको सही इन्वेस्टमेंट चुनने और तय समय में जरूरी कमाई करने में मदद मिलेगी, जिससे कि आप अपने लक्ष्य को हासिल कर सकें।
Step 3 : लक्ष्यो और इनकम के बीच के अंतर को पहचानना
एक बार जब आप अपने करंट फाइनेंशियल स्टेटस(Current Financial Status) को देखकर असेट्स, लायबिलिटीज और सेविंग के साथ भविष्य के लक्ष्यों की तुलना करते हैं तो आपको पैसों की कमी का अंदाजा लग जाएगा।
इससे आप को साफ पता चल जाएगा की भविष्य में किसी खास लक्ष्य के लिए आपको कितनी रकम(Amount) की आवश्यकता होगी।
Step 4 : अपना निजी फाइनेंशियल प्लान बनाएं
एक बार फाइनेंशियल आवश्यकता(Financial Requirement) को समझ लेने के बाद शेयर(Share), इक्विटी म्यूच्यूअल फंड(Equity Mutual Fund), पीपीएफ(PPF), बॉन्ड(Bonds), टर्म डिपॉजिट(Term Deposit), डेट फंड(Debt Fund) जैसे विभिन्न इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस को देखना चाहिए।
आपको पहचानना होगा की कौन सा इन्वेस्टमेंट कॉम्बिनेशन(Investment Combination) आपकी जरूरतों को पूरा कर सकता है। आपके इन्वेस्टमेंट का पीरियड(Investment Period) आपके लक्ष्य(Goal) के समय के अनुसार ही होना चाहिए।
Step 5 : अपना फाइनेंसियल प्लान लागू करें
अब प्लान(Plan) पर काम करने का समय है। जरूरी डाक्यूमेंट्स(Documents) इकट्ठा करें, जरूरी बैंक अकाउंट्स(Bank Accounts), डीमेट, ट्रेडिंग अकाउंट(Dmat and Trading Account) खोलें। ब्रोकर(Broker) से मिले और काम शुरू करें।
सबसे जरूरी है इन्वेस्टमेंट शुरू करें और अपने प्लान पर टिके रहें।
Step 6 : समय-समय पर अपने प्लान का रिव्यू करना
आपने अपनी फाइनेंसियल प्लानिंग बनाई और उसे लागू भी किया, लेकिन फाइनेंसियल प्लानिंग एक बार का काम नहीं है। प्लानिंग की सफलता के लिए डेडीकेशन के साथ समय-समय पर रिव्यू(Review) जरूरी है।
आपका इन्वेस्टमेंट कैसा परफॉर्म कर रहा है ???? उसके आधार पर आपको अपने करंट फाइनेंशियल स्टेटस, गोल और इन्वेस्टमेंट पीरियड में छोटे या बड़े चेंजेज करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
अगर आपको फाइनेंसियल प्लानिंग बनाने में कठिनाई आ रही हो तो आप किसी प्रोफेशनल फाइनेंशियल प्लानर (Professional Financial Planner) की मदद ले सकते हैं।
फाइनेंसियल प्लानिंग के लिए टिप्स-Tips for Financial Planning
- अभी शुरू करें : अगर आप 35 या 40 साल के भी हो तो भी अगले 5 साल का इंतजार करने के बदले अभी शुरुआत करना अच्छा है। एक-एक दिन महत्वपूर्ण है।
- अपने प्रति ईमानदार रहे : जरूरत पड़ने पर दूसरों की सहायता ले।
- रीजनेबल लक्ष्य बनाएं : ऐसे लक्ष्य बनाएं जो रीजनेबल और मापे जा सकते हो।
- समय-समय पर अपने प्लान और फाइनेंसियल स्टेटस पर नजर डालते रहें और आवश्यकतानुसार प्लान में परिवर्तन करें।
- अपने इन्वेस्टमेंट की परफॉर्मेंस का सदैव रिव्यू करते रहे और जरूरत पड़ने पर कहीं और इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं।
- एक्टिव रहें : प्लानिंग की प्रक्रिया(Financial Planning Process) में आपका शामिल रहना जरूरी है क्योंकि आपको लगातार निगरानी रखनी है कि आपकी गाड़ी कमाई के इन्वेस्टमेंट का परफॉर्मेंस कैसा है? यह काम कोई दूसरा आपके लिए नहीं करेगा।
इन्वेस्टमेंट रिस्क क्या है ?-What is Investment Risk?
यदि आपको आपके द्वारा किए गए इन्वेस्टमेंट पर अनुमानित रिटर्न का नहीं मिलना या आपके द्वारा इन्वेस्ट किया गया अमाउंट के डूबने की आशंका को ही इन्वेस्टमेंट रिस्क(Investment Risk) कहते हैं।
जीवन के तमाम उतार-चढ़ावों की तरह सभी इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस में कुछ हद तक रिस्क रहता है, किसी में कम, तो किसी ने ज्यादा। इसलिए किसी इन्वेस्टमेंट में शामिल रिस्क की पहचान करना और अपनी रिस्क कैपेसिटी एवं रिटर्न की उम्मीदों के साथ इसका मिलान करना ही सक्सेसफुल इन्वेस्टमेंट(Successful Investment) की कुंजी है।
रिस्क(Risk) और रिवार्ड(Rewards) मे सीधा संबंध है।
इन्वेस्टमेंट रिस्क को दो भागों में बांटा गया है :
- रिस्क लेने की कैपेसिटी
- और, रिस्क टोलरेंस कैपेसिटी
रिस्क लेने की कैपेसिटी
रिस्क लेने की कैपेसिटी विभिन्न कारकों पर निर्भर करती जैसे इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य(Objective of Investment), इन्वेस्टमेंट पीरियड(Investment Period), आयु(Age), इनकम(Income), डिपेंडेंट्स की संख्या(Number of Dependeds), करंट असेट्स(Current Assets) आदि।
- इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य(Objective of Investment) : यह समझना सबसे ज्यादा जरूरी है की इन्वेस्टमेंट के पीछे आप का मुख्य उद्देश्य क्या है। हो सकता है कि, आप अपने फाइनेंसियल उद्देश्य पाने के लिए असेट्स बनाना चाह रहे हो या आप महंगाई से बचने के लिए सेविंग कर रहे हो।
- इन्वेस्टमेंट पीरियड(Investment Period) : अपने इन्वेस्टमेंट पर मनपसंद रिटर्न हासिल करने के लिए जितने अधिक समय के लिए इंतजार कर सकते हैं तो आपकी रिस्क उठाने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।
दूसरी ओर, यदि आपको कम समय में धन की जरूरत है तो कम रिस्क वाले इंस्टुमेंट में इन्वेस्टमेंट करना चाहिए।
- उम्र(Age) : असेट्स बनाने के लिए समय और पैसा दोनों होने चाहिए। आप जितने अधिक समय तक अपना इन्वेस्टमेंट बनाए रखेंगे बेहतर रिटर्न कमाने के अवसर उतने ही बढ़ जाएंगे और पैसा डूबने की आशंका कम हो जाएगी ।
जवान (Young) लोगों की रिस्क उठाने की कैपेसिटी ज्यादा होती है, क्योंकि उनके पास समय की कमी नहीं होती है।
- इनकम और अर्जित कैपिटल : सामान्यतया यह देखा गया है कि आपकी इनकम और अर्जित कैपिटल जितनी अधिक होती है आपकी रिस्क उठाने की कैपेसिटी उतनी ही अधिक होगी।
अथार्त आप जितना अधिक इनकम करते हैं या सेविंग करते हैं आपकी इन्वेस्टमेंट कैपेसिटी उतनी ही अधिक होती है और आप उतना ही अधिक रिस्क उठा सकते हैं।
- परिवार में डिपेंडेंट्स की संख्या : आपके परिवार में जितनी अधिक सदस्य होंगे, आपकी रिस्क उठाने की कैपेसिटी उतनी ही कम होगी।
उदाहरण के लिए एक यंग और सिंगल व्यक्ति अधिक रिस्क उठा सकता है और वहीं पर वह आदमी जिसके ऊपर अपने माता पिता और बच्चों की जिम्मेदारी होती है, वह सुरक्षित इन्वेस्टमेंट करना चाहेगा।
उपरोक्त सभी कारक आपकी रिस्क उठाने की कैपेसिटी पर असर डालते हैं।
रिस्क टोलरेंस(सहनशीलता)- Risk Tolerance
रिस्क टोलरेंस आपकी रिस्क उठाने की कैपेसिटी का साइकोलॉजिकल रूप है।
यह दर्शाता है कि अगर आपके इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो(Investment Portfolio) की वैल्यू में गिरावट होने लगती है तो आप उस गिरावट को किस लेवल तक बर्दाश्त कर सकते हैं।
दूसरे शब्दों में रिस्क टोलरेंस यह बताता है कि आपके इन्वेस्टमेंट में नुकसान होने पर आप कैसे रिएक्ट करेंगे।
रिस्क टोलरेंस और रिस्क उठाने की कैपेसिटी में बहुत छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण अंतर होता है।
रिस्क टोलरेंस(Risk Tolerance) आपके दिमाग में इन्वेस्टर्स के रूप में रहने वाली एक सोच है, जो यह बताती है कि आप कितना रिस्क उठाना चाहते हैं। रिस्क उठाने की कैपेसिटी यह दर्शाती है कि विभिन्न कारणों से आपको कितना रिस्क उठाना चाहिए।
हर बार स्टॉक मार्केट(Stock Market) के नीचे जाने पर घबरा जाना यह दिखाता है कि आपका रिस्क टोलरेंस कम है और यदि आप शांत बने रहते हैं और हर गिरावट का सामना करते हैं तो आपकी रिस्क टोलरेंस अधिक है।
आपको इन्वेस्टमेंट करने से पहले अपनी रिस्क टोलरेंस को जानना बहुत जरूरी है क्योंकि रिस्क उठाने की कैपेसिटी और रिस्क टोलरेंस आपकी इन्वेस्टमेंट स्टेटर्जी(Investment Strategy) बनाने में मददगार साबित होते हैं। इसके लिए सेल्फ एनालिसिस और सामान्य फाइनेंसियल प्लानिंग(Financial Planning and Analysis) की जरूरत होती है।
विभिन्न इन्वेस्टमेंट्स रिस्क क्या है ?-What is Various Investments Risk?
फाइनेंसियल प्लानिंग में भिन्न भिन्न प्रकार के इन्वेस्टमेंट इंस्टूमेंट(Investment Instrument) का उपयोग किया जाता है और इनके रिस्क के लेवल भी अलग-अलग होते हैं।
इक्विटी और म्यूच्यूअल फंड-Equity and Equity Mutual Fund
इक्विटी और इक्विटी म्यूच्यूअल फंड में ज्यादा रिस्क होता है।
यह रिस्क या तो शेयर के गलत चयन से या फिर शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट करने से होता है। लोंग टर्म इन्वेस्टमेंट से मिलने वाला रिटर्न अन्य सभी इन्वेस्टमेंट्स से मिलने वाले रिटर्न से कहीं अधिक होता है। इसका उपयोग महंगाई से मुकाबला करने के लिए और वेल्थ क्रिएशन(Wealth Creation) के लिए किया जाता है।
शॉर्ट टर्म में इक्विटी में रिस्क काफी ज्यादा होता है और स्टॉक मार्केट के उठापटक से इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो का वैल्यू बदलता रहता है। इस रिस्क को कम करने का एकमात्र रास्ता सही शेयर का चयन और लोंग टर्म इन्वेस्टमेंट है।
डेट इंस्ट्रूमेंट-Debt Instrument
इन्वेस्टमेंट की इस केटेगरी में गवर्नमेंट बॉन्ड्स(Government Bonds), मनी मार्केट फंड(Money Market Fund), बैंक के फिक्स डिपॉजिट(Bank’s Fixed Deposit), लिक्विड और गिल्ट फंड(liquid and Gilt Fund) आदि आते हैं। यह बहुत कम रिस्क वाले इन्वेस्टमेंट होते हैं।
इस प्रकार के इन्वेस्टमेंट का उपयोग सेविंग बैंक अकाउंट(Saving Bank Account) की तरह पैसा बचाने के लिए किया जाता है।
ऐसेट एलोकेशन क्या है ?-What is Asset Allocation?
रिस्क प्रोफाइल और रिटर्न टारगेट को ध्यान में रखते हुए सर्वश्रेष्ठ इन्वेस्टमेंट मिक्स(Investment Mix) तैयार करने के प्रोसेस(Process) को ऐसेट एलोकेशन(Asset Allocation) कहते है।
ऐसेट एलोकेशन का बेसिक फार्मूला यह है कि इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो में डेट इंस्ट्रूमेंट का का हिस्सा आपकी उम्र के बराबर होना चाहिए और बाकी का हिस्सा इक्विटी में होना चाहिए। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाएगी पोर्टफोलियो में डेट का हिस्सा बढ़ाते रहना होगा।
सही तरीके से किया गया ऐसेट एलोकेशन, पोर्टफोलियो के संपूर्ण रिस्क को सभी इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट में समान रूप से बांट देता है।
एक संतुलित पोर्टफोलियो में इक्विटी,म्यूच्यूअल फण्ड, बॉन्ड, डेट, कमोडिटी जैसे सोना और रियल एस्टेट का मिक्सर शामिल होना चाहिए।
प्रत्येक इन्वेस्टमेंट कैटेगरी में आप कितना कैपिटल इन्वेस्ट करेंगे, यह आपकी रिस्क प्रोफाइल पर निर्भर करता है।
फाइनेंसियल प्लानिंग में इन्वेस्टर्स कैटेगरी – Investors Category in Financial Planning
एक फाइनेंसियल एडवाइजर(Financial Advisor) इन्वेस्टमेंट रिस्क(Investment Risk) के आधार पर इन्वेस्टर्स (Investor) को निम्न कैटेगरी में रखते हैं:-
- कंजरवेटिव -Conservative
- मॉडरेटली कंजरवेटिव- Moderetly Conservative
- एग्रेसिव – Aggressive
- वेरी एग्रेसिव – Very Aggressive
फाइनेंसियल प्लानिंग में सही इन्वेस्टमेंट का चुनाव-Selection of the Right Investment in Financial Planning
आपके इन्वेस्टमेंट पीरियड से आपकी रिस्क उठाने की कैपेसिटी का पता चलता है।
सही इन्वेस्टमेंट का चुनाव करने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि आपने इन्वेस्टमेंट की प्लानिंग(Investment Planning) कितने समय के लिए बनाई है ?
शॉर्ट टर्म के लिए इक्विटी में इन्वेस्टमेंट काफी उतार-चढ़ाव भरा होता है। वह आपके इन्वेस्टमेंट की वैल्यू को उसी समय घटा सकता है, जब आपको उसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो।
इन्वेस्टमेंट पीरियड(Investment Period) चाहे जो भी हो, आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपके पोर्टफोलियो में वेल्थ क्रिएशन के लिए एक हिस्सा इक्विटी का हो और कैपिटल(Capital) को सुरक्षित रखने के लिए एक हिस्सा डेट इंस्ट्रूमेंट का हो।
फाइनेंसियल प्लानिंग में ऐसेट एलोकेशन का एनालिसिस करना-Analysis of Asset Allocation in Financial Planning
आपके रिस्क प्रोफाइल और रिटर्न के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए और समय के आधार पर इन्वेस्टमेंट मिक्स बनाया जाता है।
अब आपको समय-समय पर यह एनालिसिस(Analysis) करना होगा की फाइनेंसियल प्लानिंग के दौरान बनाए गए ऐसेट एलोकेशन (Asset Allocation) से आपकी वेल्थ क्रिएशन(Wealth Creation) में कितनी मदद मिल रही है या फिर जो लक्ष्य बनाए हैं उसमें गैप(Gap) हैं।
यदि गैप है, तो निम्न तीन चीजों का संयोजन अपनाना होगा :-
- अधिक इनकम के लिए हाई रिटर्न इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट करना होगा यानी कि रिस्क के लेवल को बढ़ाना होगा, जैसे-पोर्टफोलियो में इक्विटी का हिस्सा अधिक रखना।
- अपने जीवन के लक्ष्य को कम करना, जैसे- छोटे घर से संतुष्ट रहें।
- सेविंग और इन्वेस्टमेंट अधिक करें, खर्चे कम करें, ताकि आप गैप को भर सके।
इस तरह यह पता चलता है कि इक्विटी में अधिक समय के लिए किया गया इन्वेस्टमेंट अन्य इंस्ट्रूमेंट के मुकाबले कहीं अधिक रिटर्न देता है।
इसलिए इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंड जैसे अधिक रिटर्न देने वाले इंस्ट्रूमेंट का एलोकेशन महत्वपूर्ण होता है।
रिस्क पर्सनैलिटी और ऐसेट एलोकेशन की समीक्षा करना-Review of Risk Personality and Asset Allocation
जीवन में उतार-चढ़ाव से परिस्थितियों में बदलाव लगा रहता है और इसलिए आपका रिस्क प्रोफाइल(Risk Profile) भी बदलता है।
जवान और अकेले रहते हुए इन्वेस्टमेंट शुरू करते समय आपकी रिस्क टॉलरेंस कैपेसिटी अधिक रहेगी जबकि 2 या 3 वर्ष बाद शादी होने और एक बच्चे का अभिभावक होने पर शायद आप इतना रिस्क नहीं उठा पाएं।
दूसरी तरफ, हो सकता है कि आपको अपने आंसेस्टर प्रॉपर्टी या पुश्तैनी संपत्ति मिली हो और आप अधिक धनवान हो गए हो, इस स्थिति में आपकी रिस्क उठाने की कैपेसिटी बढ जाती है।
इसलिए समय-समय पर अपनी रिस्क प्रोफाइल और ऐसेट एलोकेशन की समीक्षा करते रहना बहुत जरूरी है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि हर 6 महीने में एक बार अपनी स्थिति की समीक्षा अवश्य करें।
फाइनेंसियल प्लानिंग में इक्विटी इन्वेस्टमेंट बहुत जरूरी है-Equity Investment is very Important in Financial Planning
आपका फाइनेंसियल प्लान आपके फाइनेंसियल गोल को हासिल करने के मकसद से एसेस्ट का एलोकेशन (Asset Allocation) तय करता है। ऐसेट एलोकेशन (Asset Allocation) में कई तरह के इन्वेस्टमेंट इंस्टूमेंट शामिल होते है, जिसमें प्रत्येक की रिस्क अलग-अलग होती है और उसी के अनुसार रिटर्न जुड़ा होता है।
सही तरीके से इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट का चुनाव करते समय यह कंफ्यूजन हो सकता है की किस इंस्ट्रूमेंट में कितना इन्वेस्टमेंट करना चाहिए।
सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाले इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट निम्न प्रकार से हैं :-
- बैंक डिपॉजिट्स,
- कंपनी डिपॉजिट्स,
- इंश्योरेंस पॉलिसी (यूनिट लिंक, एंडोमेंट और मनी बैक),
- डेट म्युचुअल फंड,
- पोस्ट ऑफिस स्मॉल सेविंग स्कीम,
- पेंशन,
- पब्लिक प्रोविडेंट फंड,
- इक्विटी शेयर और इक्विटी म्यूचुअल फंड,
- गोल्ड और सिल्वर,
- रियल एस्टेट।
कितना रिटर्न-How Much Returns
बुनियादी रूप से देखा जाए तो किसी भी इन्वेस्टमेंट में दो तरीके के लक्षण होते हैं:-
- लोन (Loan) जैसे लक्षण :- इसमें मिलने वाला लाभ लोन लेने वाले द्वारा तय किया जाता है और बिजनेस या मार्केट से जुड़ा रिस्क नहीं उठाना पड़ता है।
- प्योर इन्वेस्टमेंट (Pure Investment) :- इसमें बिजनेस या वेल्थ में होने वाली ग्रोथ और प्रॉफिट में हिस्सेदारी होती है।
जब आप एफडी (FD), इंश्योरेंस पॉलिसीज (Insurancy Policy), पोस्ट ऑफिस की स्कीम्स (Post Office Small Saving), पीपीएफ (PPF) आदि में इन्वेस्ट करते हैं तो, आप अपना पैसा बैंक (Bank), कंपनी (company), इंश्योरेंस कंपनी (Insurance Company) या पोस्ट ऑफिस (Post Office) को उधार दे रहे होते हैं। इसके बदले में आपको मिलने वाला इंटरेस्ट (Interest) उधार लेने वाले द्वारा तय किया जाता है।
इसमें आपको मिलने वाले इंटरेस्ट के अलावा आप किसी प्रकार के प्रॉफिट में हिस्सेदार नहीं होते हैं।
यदि आपने अपना पैसा किसी कंपनी के एफडी (FD) में लगाया है और वह कंपनी भारी प्रॉफिट कमाती है तो भी आपको सिर्फ इन्वेस्टमेंट के समय तय किया गया इंटरेस्ट ही मिलता है। कंपनी के प्रॉफिट में से आपको कुछ नहीं मिलता है।
दूसरी ओर, जब आप इक्विटी (Equity)मे इन्वेस्ट करते हैं तो कुछ सीमा तक उस कंपनी के मालिक की भूमिका में होते है जिसके शेयर(Share) आपने खरीदे हैं। इससे आपको कंपनी के प्रॉफिट या भविष्य में कंपनी की ग्रोथ में हिस्सेदार बनने का मौका मिलता है।
एक इन्वेस्टर (Investor) के रूप में इन्वेस्ट (Invest) के दोनों प्रकार से जुड़े हुए रिस्क और रिटर्न (Risk and Return) के अंतर को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे यह आसानी से समझा जा सकता हैं कि आपके द्वारा किए गए इन्वेस्टमेंट में रिटर्न और रिस्क (Risk and Reward Ratio) के संबंध में क्या उम्मीद करनी चाहिए ?
आशा है कि अब आप इन्वेस्टमेंट (Investment) की दुनिया में कदम रखने के लिए तैयार हैं ताकि, आप अपने पैसे को अपने लिए बेहतरीन ढंग से उपयोग कर सकें।
सारांश
आप अपनी सेविंग और इन्वेस्टमेंट के सहारे अपनी वर्तमान लाइफस्टाइल को जारी रख पाए, रिटायरमेंट कॉरपस इकट्ठा करें और किसी अनहोनी या मेडिकल खर्चों को उठा सकें, यह सब सुनिश्चित करने के लिए फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) जरूरी है।
आपको प्लानिंग प्रक्रिया पर करीबी नजर रखनी चाहिए जिससे आपको पता चले कि आपके गाढ़े पसीने की कमाई किस तरह काम कर रही है।
आज ही शुरू करे फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) बनाने के लिए कभी देर नहीं होती है।
आशा करते हैं आपको यह आर्टिकल फाइनेंसियल प्लानिंग क्या होता है ? कैसे किया जाता है ? अच्छा लगा होगा। यदि आप को जानकारी उपयोगी लगती है तो आप अपने जानने वालों को इसे शेयर कर सकते हैं।
Frequently Asked Questions
एक फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) में आपके कर्रेंट फाइनेंस(Current Finance), फाइनेंसियल गोल (Financial Goals) और उन गोल्स (Goals) को हासिल करने के लिए स्टेटर्जी (Statergies) बनाई जाती है। अच्छी फाइनेंसियल प्लानिंग में कैश फ्लो (Cash Flow), डेट (Debts),सेविंग (Saving), इन्वेस्टमेंट (Investment), इंश्योरेंस (Insurance), और फाइनेंसियल लाइफ के सभी आवश्यक एलिमेंट के बारे में डिटेल शामिल होना चाहिए।
फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) किसी के जीवन के गोल्स (Goals) को पूरा करने के लिए एक स्टेप बाय स्टेप (Step by Step) प्रोसेस है। फाइनेंसियल प्लानिंग एक गाइड के रूप में कार्य करता है जो आपको आपकी इनकम (Income), एक्सपेंसेस (Expenses) और इन्वेस्टमेंट (Investment) के नियंत्रण में मदद करता है, जिससे आप अपने पैसे का बेहतरीन ढंग से मैनेज कर सकते हैं और अपने गोल्स (Goals) को प्राप्त कर सकते हैं।
फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) एक 6 स्टेप्स प्रोसेस है :-
(1) अपनी वर्तमान आर्थिक स्थिति (Financial Position) पहचाने।
(2) अपने लक्ष्यों या गोल (Goals) की पहचान करें।
(3) लक्ष्यो (Goals) और इनकम (Income) के बीच के अंतर को पहचानना।
(4) अपना निजी फाइनेंशियल प्लान (Financial Plan) बनाएं।
(5) अपना फाइनेंसियल प्लान लागू करें, और
(6) समय-समय पर अपने प्लान का रिव्यू (Review) करना।
फाइनेंसियल प्लानिंग में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बजट (Budgeting) है।
फाइनेंसियल प्लानिंग के चार (4) एरिया क्या हैं?- What are the Four Areas of Financial Planning?
फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) के चार एरिया हैं :-
1. कैश फ्लो (Cash Flow)
2. डेट (Debts)
3. रिस्क (Risk), और
4. एसेट्स मैनेजमेंट (Assets Management)
फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) के प्रकार :-
1. कैश फ्लो मैनेजमेंट (Cash Flow Management)
2. इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट (Investment Management)
3. डेट मैनेजमेंट (Debt Management)
4. टैक्स मैनेजमेंट (Tax Management)
तीन प्रकार की फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) हैं:-
1. शॉर्ट टर्म (Short Term) फाइनेंसियल प्लान : 1 वर्ष के लिए तैयार किया जाता है ।
2. मीडियम टर्म (Medium Term) फाइनेंसियल प्लान : 1 वर्ष से लेकर 5 वर्ष तक के अवधि की प्लानिंग।
3. लोंग टर्म (Long Term) फाइनेंसियल प्लान : 5 वर्ष या उससे अधिक समय के लिए तैयार किया जाता है।
फाइनेंशियल प्लानर (Financial Planner) एक प्रोफेशनल होता है जो कंपनियों और व्यक्तिगत व्यक्तियों की लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल गोल (Long Term Financial Goals) को अचीव करने के लिए प्लानिंग बनाने में मदद करता है।
जबकि
फाइनेंशियल एडवाइजर (Financial Advisor) इन्वेस्टमेंट और अन्य अकाउंट्स के लिए पैसों का मैनेजमेंट करने में सहायता करते हैं।
फाइनेंशियल प्लानिंग की लिमिटेशंस क्या है? What are the limitations of Financial Planning?
फाइनेंसियल प्लानिंग (Financial Planning) की सामान्य लिमिटेशंस निम्न है :-
1. अनसर्टेन फ्यूचर
2. डाटा एक्यूरेसी की कमी
3. पर्यावरण और पॉलिसीज में तेजी से बदलाव
4. एक्सटर्नल फैक्टर्स
5. टाइम कंजूमिंग और एक्सपेंसिव प्रोसेस
यह है :-
1. इनकम स्टेटमेंट (Income Statement)
2. कैश फ्लो स्टेटमेंट (Cash Flow Statement)
3. बैलेंस शीट (Balance sheet)
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